हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

Special on Hindi Journalism Day

Special on Hindi Journalism Day

398 वे सालों में मिशन से प्रोफेशन  में बदल गई हिंदी पत्रकारिता
कई महत्वपूर्ण पड़ाव तय किए हिंदी पत्रकारिता ने

करनाल,  30 मई (शैलेंद्र जैन): Special on Hindi Journalism Day: हिंदी पत्रकारिता ने अपनी 398 साल की यात्रा में कई पढ़ाव तय किए हैं। इस दौरान परिवर्तन के दौर से गुजरते हुए तकनीकी दौर में प्रवेश कर गई हैं। आने वाले समय में और मौजूदा हालात में हिंदी पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ी जा रही हैं। भले ही आज  विश्व में सबसे अधिक पाठक संख्या हिंदी पत्र और पत्रिकाओं की हैं। इसके अलावा हिंदी ने तकनीक युग में अपना काफी हद तक विस्तार किया हैं। आज हिंदी पत्रकारिता की पहुंच छोटे देहात से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक हो गई हैं। आज से 397 साल पहले वीर भूमि अब के पश्चिम बंगाल और पुराने बंग भूमि के कोलकोता में उत्तंड मार्तंड पहला हिंदी समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था। उसके बाद हिंदी समाचार पत्र लगातार आगे बढ़ते गए। कई दौर में हिंदी पत्रकारिता की यात्रा चलती रही। सबसे पहले समाज सुधार आंदोलनों की अवाज हिंदी पत्र बने। पहले स्वतंत्रता संग्राम में भी हिंदी पत्रकारों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई में भारत की आवाज हिंदी पत्र बने। देश को आजादी दिलवाने में हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश में हिंदी पत्रकारिता को समाज का दर्पण माना जाता था। खुद संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेदकर ने भी दलित पत्र का संपादन किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यंग इंडिया का प्रकाशन किया। इससे पहले गदर एक जाना माना समाचारपत्र था। अंग्रेजी समाचार पत्रों का भी दौर था। आम आदमी की आवाज हिदी समाचार पत्र बने। देश मतें साप्ताहिक और मासिक पत्रों का दौर रहा। हिंदी पत्रकारिता ने कपड़े से लेकर मोबाइल तक का सफर तय किया। अखबारों ने हैंड काम्पोजिंग से लेकर कंप्यूटर और ट्रेडल से लेकर बड़ी मशीनों तक का सफर तय किया। हिदी पत्रकारिता ने बाजार वाद और पूंजीवाद के भी हमले सहन किए। हिंदी पत्रकारिता ने आपात काल में प्रतिबंध और अंकुश का दौर भी देखा। हिंदी पत्रकारिता ने शुरू से आम लोगों की राय तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भले ही भूमि सुधार आंदोलन हो या फिर आपात काल के बाद नई राजनीतिक ताकतों का उदय हो। हिंदी पत्रकारिता हमेशा निर्भीकता और निष्पक्षता की कसौटी पर खरी उतरी। समय समय पर जन आंदोलनों की सूत्रधार बनने में हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदी पत्रकारिता की विश्वसनीयता, निडरता और निष्पक्षता पर हमले 19 वी ंसदी के अंतिम सालों में शुरू हो गए। 1980 के बाद जहां हिंदी पत्रकारिता का विस्तारीकरण हुआ। वहीं पर इसका बाजारीकरण भी शुरू हो गया। अखवारों के लेाकल संस्करण शुरू हुए। हिंदी प9कारिता की पहुंच अंतिम गांव तक पहुंची। जहां 1980 से पहले पाठकों की संख्या कुछ लाखों में थी। आज हिंदी पत्र पत्रिकाओं की संख्या करोड़ों और अरबों में पहुंच गई। आज विश्व में सबसे अधिक पाठक संख्या हिंदी समाचारपत्रों की हैं। आज की सदी में हिंदी पत्रकारिता में तकनीक और आधुनिकता चरम पर हैं। इंटरनैट के दौर से हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा मिली। घटना क्रम पर कवरेज् की त्वरितता भी बढ़ी। देर रात के भी समाचार भी दूसरे दिन समाचारपत्रों में दिखने लगे। हिंदी पत्रकारिता ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन हो गई।

21 वीं सदी में हिंदी पत्रकारिता के समक्ष है विश्वसनीयता और निष्पक्षता की चुनौति:हिंदी पत्रकारिता के आधुनिक दौर और विस्तारीकरण के दौर में भले ही हिंदी पत्रकारिता की पहुंच अधिक लोगों तक हुई हो लेकिन आधुनिकता के दौर मेे हिंदी पत्रकारिता के समक्ष कई चुनौतियां सामने आने लगीं। इस दौरान समाचारपत्रों में कई बदलाव दिखाई दिए। समाचारपत्र जहां पहले मिशन थे। लोगों की सेवा और समर्पण का माध्यम थे। लेकिन इस आधुनिक सदी में पत्रकारिता मिशन से प्रोफेशन में बदलती दिखाई देने लगी। जहां समाचार पत्र पहले दलिनतों और शोषितों की आवाज बनते थे। वहीं पर मविज्ञापन का माध्यम बन गए। समाचारों की दिशा और दशा बाजार तय करने लगे। कुछ सालों में ऐजेंडा पत्रकारिता के साथ प्रोपेगंडा पत्रकारिता को अधिक स्थान मिलने लगे। पहले समचारों में गरीब मजदूरों किसानों की आवाज अधिक होती थी। इसके बाद प्रायोजित पत्रकारिता का एक नया स्वरूप दिखाई दिया। समाचारपत्रों में  मािफया राज का उदय हुआ। अपराधी, नशाा माफिया और जमीन के सौदागर अपने धंधों को बचाने के लिए अखबारों का संचालन करने लगे। पहले पत्रकारों को लोग भगवान की तरह पूजते थसे। अब लोगों को पत्रकारों में शैतान नजर आने लगे। इस दौर में मोबाइल पत्रकारिता का वीभरत्स स्वरूप सामने आया हैं। खबर कवर करने की जल्दी में लोग गलतियां कर जाते थे। जब तकनीक नहीं थी। रंगीन समाचारपत्र नहीं थे तब पत्रकार पर लोगों को भरोसा था। लेकिन अब सब कुछ हैं लेकिन आम आदमी का पत्रकार पर से भरोसा डगमगा रहा हैं।